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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2696
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

अध्याय - 4

परिकल्पना

(Hypothesis)

 

प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।

अथवा
एक अच्छी अनुसन्धान परिकल्पना में कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए? अनुसन्धान में परिकल्पना का क्या महत्व है?
अथवा
प्राक्कल्पना ( उपकल्पना ) का अर्थ बताइए और इसके निर्माण के लिए विभिन्न स्त्रोतों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
अनुसंन्धान परिकल्पना से क्या अभिप्राय है? एक अच्छी परिकल्पना की दस विशेषताएँ लिखिए। परिकल्पना बनाने में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आती हैं?
अथवा
परिकल्पना का अर्थ समझाइये तथा इसके प्रकार बताइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. परिकल्पना का अर्थ बताइये।
2. परिकल्पना के प्रकार बताइये।

उत्तर -

उपकल्पना अथवा परिकल्पना
(Hypothesis)

उपकल्पना को प्राक्कल्पना, पूर्व विचार आदि नामों से भी जाना जाता है। उपकल्पना वैज्ञानिक अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण चरण है। उपकल्पना दो अथवा दो से अधिक चरों के बीच सम्बन्ध का अनुमानित विवरण है। यह केवल अनुमान मात्र है जिसका कि परीक्षण करना अभी बाकी है। उपकल्पना अंग्रेजी के शब्द hypothesis का हिन्दी रूपान्तर है जिसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-'hypo' तथा ‘thesis’। प्रथम शब्द का अर्थ है कल्पना या काल्पनिक (tentative) जबकि दूसरे का अर्थ है प्रस्तावना (statement)। इस प्रकार उपकल्पना का शाब्दिक अर्थ है 'काल्पनिक प्रस्तावना'।

उपकल्पना को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

(i) लुण्डबर्ग (Lundberg) के अनुसार, “उपकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूल रूप में उपकल्पना एक अनुमान अथवा कल्पनात्मक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसन्धान के आधार पर बनता है।"

(ii) पी० वी० यंग (P. V. Young) के अनुसार, "एक कार्यवाहक केन्द्रीय विचार, जो उपयोगी खोज का आधार बनता है, कार्यवाहक उपकल्पना माना जाता है।"

(iii) एडवर्ड्स (Edwards) के अनुसार, "उपकल्पना दो या दो से अधिक चरों के सम्भाव्य सम्बन्ध के विषय में कथन होता है, यह एक प्रश्न का ऐसा प्रयोग सम्बन्धी उत्तर होता है कि जिससे चरों के सम्बन्ध का पता लगता है।"

(iv) गुडे तथा स्केट्स (Goode & Scates) के अनुसार, “उपकल्पना एक अनुमान है कि जिसे अन्तिम अथवा अस्थायी रूप से किसी अवलोकित तथ्य अथवा दशाओं की व्याख्या हेतु स्वीकार किया गया हो एवं जिससे अन्वेषण को आगे पथ प्रदर्शन प्राप्त है।"

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर उपकल्पना को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है- उपकल्पना एक प्रारम्भिक अथवा प्राथमिक कल्पना, विचार या आधार है जो सामाजिक तथ्यों एवं घटनाओं की खोज करने तथा उसके विषय में ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रेरणा प्रदान करता है। इस उपकल्पना में परिवर्तन की क्षमता या गुन्जाइश रखी या मानी जाती है। इसलिए इसे 'काम चलाऊ उपकल्पना' या 'कार्यवाहक उपकल्पना' (working hypothesis) भी कहते हैं।

उपकल्पना की मुख्य विशेषतायें
(Chief Characteristics of Hypothesis)

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से उपकल्पना की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-

(1) उपकल्पना में दो या दो से अधिक चर (Variables) होते हैं।
(2) उपकल्पना का वैज्ञानिक तथ्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
(3) उपकल्पना तथ्यात्मक परीक्षण के योग्य होती है।
(4) उपकल्पना का सम्बन्ध किसी समस्या के एक विशिष्ट पक्ष से होता है।
(5) उपकल्पना सामाजिक तथ्यों एवम् घटनाओं की खोज करने तथा उसके विषय में ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रेरणा प्रदान करती है।

 

श्रेष्ठ परिकल्पना (उपकल्पना) के आवश्यक तत्व
(Essential Elements of a Good Hypothesis)

एक अच्छी कार्यवाहक अथवा उपयोगी उपकल्पना में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं-

(1) अवधारणाओं की स्पष्टता (Clarity of concepts) - उपकल्पना को अवधारणात्मक दृष्टि से स्पष्ट होना चाहिए। उपकल्पना के निर्माण में क्योंकि अवधारणाओं का अधिक महत्व होता है। इसलिए अवधारणाओं की परिभाषाएँ इतनी सुनिश्चित एवं स्पष्ट होनी चाहिएं कि उपकल्पना को समझने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो। एक अच्छी उपकल्पना में प्रयोग किये जाने वाले शब्द सुस्पष्ट होने चाहिएं।

(2) परिभाषाओं की स्पष्टता (Clarity of definitions ) – समाजशास्त्र में परिभाषाओं का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। इन परिभाषाओं की स्पष्टता होने पर एक ही एक अच्छी उपकल्पना का निर्माण सम्भव है। अतएव प्राकल्पना में प्रयोग की गई सभी प्रत्ययों की परिभाषाएँ इतनी सुनिश्चित एवं स्पष्ट होनी चाहिएं कि प्राकल्पना को समझने में कोई कठिनाई न हो।

(3) तथ्यों की सत्यता की परीक्षा (Verification of the facts) - उपकल्पना ऐसी भावना है जिसके विचारों अथवा तथ्यों की परीक्षा करनी है, अतएव उपकल्पना के आधारभूत तथ्य ऐसे होने चाहिएं जिनकी सत्यता की परीक्षा की जा सके। यदि तथ्यों की जटिलता के कारण उनकी सत्यता की जाँच सम्भव नहीं हो सकी तो उपकल्पना का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा।

(4) विशिष्टता (Specificity ) - एक अच्छी उपकल्पना विशिष्ट होनी चाहिए। यदि उपकल्पना सामान्य है तो इसकी प्रामाणिकता की जाँच करना कठिन कार्य हो जाता है। इसलिए उपकल्पना अगर सामान्य है तो भी इसका परिसीमन करके इसे विशिष्ट रूप प्रदान करना चाहिए।

(5) प्रयोगसिद्धता का गुण (Empirical referents ) - एक अच्छी उपकल्पना वह है जिसकी प्रामाणिकता की जाँच अनुभवाश्रित विधि द्वारा की जा सकती है। वास्तव में, यदि उपकल्पना की प्रामाणिकता की जाँच वास्तविक तथ्यों के आधार पर नहीं की जा सकती तो वह उपकल्पना नहीं है। इसलिए उपकल्पना को नैतिक निर्णयों या आदर्शों से सम्बन्धित नहीं होना चाहिए।

(6) पूर्वनिर्मित सिद्धान्त से सम्बन्धित (Related to Body of Theory ) - उपकल्पना ऐसी होनी चाहिये जो सम्बन्धित क्षेत्र में पूर्वस्थापित सिद्धान्त से जुड़ी हुई हो अर्थात् जो किसी मुख्य सिद्धान्त की निरन्तरता को बनाये रखे। विज्ञान के विकास में ऐसी ही उपकल्पना सहायक सिद्ध होती है जिसका सम्बन्ध पूर्व ज्ञान में योगदान करना होता है। नई-नई और पृथक्-पृथक् उपकल्पनाओं से वैज्ञानिक विकास तेजी से नहीं होता। असम्बद्ध उपकल्पनाओं की परीक्षा विस्तृत सिद्धान्तों के सन्दर्भ में नहीं की जा सकती। विज्ञान का बहुमुखी विकास तभी सम्भव होता है जब सिद्धान्तों से उपकल्पनाओं का निर्माण किया जाये और उपकल्पनाओं से सिद्धान्त स्थापित किये जायें।

(7) उपलब्ध प्रणालियों से सम्बन्धित (Related to Available Techniques) - यदि उपकल्पना प्रचलित अथवा उपलब्ध अनुसन्धान प्रणालियों से सम्बन्धित है तो उसकी सत्यता का परीक्षण करना आसान हो जाता है और यदि उपकल्पना ऐसी है, जिसके आधार पर तथ्यों का संकलन आदि अनुसन्धान कार्य के लिये उपयुक्त साधन और प्रणालियाँ उपलब्ध नहीं हैं तो उपकल्पना अव्यावहारिक हो जाती है।

 

(8) किसी सिद्धान्त पर आधारित उपकल्पना (Hypothesis Based on a Theory) - गुडे एवं हॉट का कहना है, "जब अनुसन्धान क्रमबद्ध रूप से पूर्व स्थित सिद्धान्त के आधार पर आधारित होता है, ज्ञान के शुद्ध अंशदान की सम्भावना अधिक होती है। दूसरे शब्दों में काम के योग्य होने के लिये उपकल्पना केवल सावधानीपूर्वक वर्णित ही नहीं होनी चाहिये, वरन् इसमें सैद्धान्तिक अनुरूपता भी होनी चाहिये।

(9) सरलता (Simplicity ) - उपकल्पना जितनी अधिक सरल होगी उतनी ही अधिक अध्ययन में वैज्ञानिकता आयेगी। इस सरलता से अनुसन्धानकर्ता की विषयगत तथ्यों के बारे में सही जानकारी प्राप्त हो सकेगी। कई बार अनेक तकनीकी शब्दों के बाहुल्य के कारण अध्ययन दिशाहीन हो जाता है।

(10) परीक्षण के लिये उपयुक्त (Capable of Empirical Test) - उपकल्पना की एक प्रमुख विशेषता परीक्षण की उपयुक्तता है। नैतिकता और आदर्शों पर आधारित उपकल्पनाओं की परीक्षा प्रयोगात्मक विधि से नहीं की जा सकती, अतः उनकी प्रमाणिकता तथा सत्यता की परीक्षा निष्पक्ष होकर नहीं की जा सकती। जो उपकल्पना आँकड़ों के आधार पर प्रमाणित की जा सके वही उपकल्पना कार्यवाहक अथवा श्रेष्ठ होती है।

(11) संक्षिप्तता (Brevity) - चूँकि उपकल्पना समस्या का सारांश होती है, अतः उसे संक्षिप्त होना चाहिए। उसकी भाषा वैज्ञानिक होनी चाहिए अन्यथा उसके शब्दों के अर्थों में परिवर्तन की सम्भावना रहती है।

उपर्युक्त विवरण द्वारा एक अच्छी उपकल्पना की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट हो जाती हैं। उपकल्पना के निर्माण में विशेष सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए तथा सम्बन्धित समस्या का गहन एवं सर्वपक्षीय परिचय प्राप्त करना चाहिए।

उपकल्पना के स्रोत
(Sources of Hypothesis)

उपकल्पना के स्रोत वैयक्तिक भी हो सकते हैं और बाह्य भी। वैयक्तिक आधार पर उपकल्पना का सबसे बड़ा स्रोत स्वयं अनुसन्धानकर्ता की प्रतिभा और सूझ-बूझ है। एक अनुसन्धानकर्ता अक्सर अपनी दूरदर्शिता, विचारों की मौलिकता तथा अनुभवों के आधार पर उपयोगी उपकल्पना का निर्माण कर सकता है। इतिहास में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जब संसार के अनेक वैज्ञानिकों ने केवल वैयक्तिक अनुभवों के आधार पर इतनी उपयोगी उपकल्पनाओं का निर्माण किया जिनकी सहायता से विश्वविख्यात वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन करना सम्भव हो सका। इसके अतिरिक्त, उपकल्पना का वाह्य स्रोत कोई भी सिद्धान्त, विचार, उपन्यास, नाटक अथवा प्रतिवेदन हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब कभी भी अनुसन्धानकर्ता किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा प्रतिपादित एक सामान्य विचार के आधार पर अपनी उपकल्पना का निर्माण करता है तो उसे उपकल्पना का बाह्य स्रोत कहा जाता है। गुडे और हाट ने उपकल्पना के निम्न चार स्रोतों का उल्लेख किया है जिन्हें संक्षेप में निम्न रूप से समझा जा सकता है-

 

(1) सामान्य संस्कृति (General Culture ) - मानव की गतिविधियों को प्रभावित करने में संस्कृति का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि व्यक्ति के व्यवहार और उसका अन्तर बहुत कुछ अपनी संस्कृति के अनुरूप ही देखा जाता है। ऐसी स्थिति में किसी अनुसन्धान कार्य के लिए बनाई जाने वाली उपकल्पनाओं पर भी एक समाज विशेष की संस्कृति का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि हम सामाजिक गतिशीलता (social mobility) के कारणों का अध्ययन करने के लिए किसी उपकल्पना का निर्माण करना चाहते हैं तो भारत तथा अमेरिका में सामाजिक अध्ययनकर्ता इससे सम्बन्धित भिन्न-भिन्न उपकल्पनाओं को लेकर अध्ययन-कार्य आरम्भ करेंगे क्योंकि इन दोनों समाजों की संस्कृति एक-दूसरे से अत्यधिक भिन्न है। इसी प्रकार यदि एक ही समस्या को लेकर नगरीय और ग्रामीण समुदाय का कोई अध्ययन किया जाये तो भी इन दोनों समुदायों के लिए उपकल्पनाओं का स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न होगा क्योंकि नगरीय और ग्रामीण संस्कृति एक-दूसरे से अत्यधिक भिन्न होती हैं।

(2) वैज्ञानिक सिद्धान्त (Scientific Theories ) - समय - समय पर प्रस्तुत किए जाने वाले वैज्ञानिक सिद्धान्त भी उपकल्पनाओं के निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। वास्तव में, एक अनुसन्धानकर्ता अपने अध्ययन द्वारा केवल नये सिद्धान्तों का निर्माण ही नहीं करता बल्कि नई परिस्थितियों में पहले से स्थापित सिद्धान्तों का परीक्षण भी करता है। इस दृष्टिकोण से जब कभी भी किसी कार्यकारी उपकल्पना का निर्माण किया जाता है तो पूर्व-सिद्धान्तों के निष्कर्षों का भी उसमें कुछ न कुछ सीमा तक समावेश होता है। विभिन्न विषयों से सम्बन्धित सिद्धान्त ही अध्ययनकर्ता को वह सामान्य ज्ञान प्रदान करते हैं जिनकी सहायता से वह एक विशेष उपकल्पना का निर्माण कर पाता है। उदाहरण के. लिए, रिजले (Risley) तथा नेसफील्ड (Nesfield) ने भारत में जाति प्रथा की उत्पत्ति का अध्ययन करने के लिए जिन उपकल्पनाओं को प्रस्तुत किया, उनका निर्माण जाति प्रथा की उत्पत्ति से सम्बन्धित पहले के सिद्धान्तों के आधार पर ही करना सम्भव हो सका। वास्तविकता यह है कि अधिकांश नई उपकल्पनाएँ किसी न किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त के आधार पर ही बनाई जाती हैं।

(3) व्यक्तिगत अनुभव ( Personal Experiences) – अनुसन्धानकर्ता के व्यक्तिगत अनुभव भी उपकल्पनाओं का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। उदाहरणार्थ लम्ब्रोसो (Lombroso) ने एक चिकित्सक होने के पश्चात् भी अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर इस उपकल्पना का निर्माण किया कि 'अपराधी जन्मजात होते हैं तथा अपनी शारीरिक विशेषताओं में वे सामान्य व्यक्तियों से भिन्न होते हैं।' बाद में एकत्रित तथ्यों के आधार पर यह उपकल्पना पूर्णतया सत्य प्रमाणित हुई। वास्तविकता यह है कि जब कभी भी कोई व्यक्ति कुछ विशेष परिस्थितियों में घटनाओं को एक विशेष रूप से घटित होते हुए देखता है तो उसके मन में कार्य-कारण सम्बन्ध की एक विशेष धारणा बन जाती है। यही धारणा उपकल्पना के निर्माण का महत्वपूर्ण स्रोत बनती है।

(4) समरूपताएँ (Analogies) - जब कभी भी दो दशाओं के बीच कुछ समानताएँ दिखाई देती हैं तो अक्सर उनके आधार पर कुछ नई उपकल्पनाओं का निर्माण हो जाता है। उदाहरण के लिए, स्पेन्सर (Spencer) द्वारा सामाजिक उद्विकास (Social Evolution) की धारणा को प्रस्तुत करने के लिए जिस उपकल्पना का निर्माण किया गया वह इस सादृश्य पर आधारित थी कि समाज की उत्पत्ति, विकास और विनाश जीव- रचना के जन्म, विकास और मृत्यु के ही समान हैं। इसी प्रकार पेड़-पौधों पर एक विशेष परिस्थिति के प्रभाव को देखकर सरलतापूर्वक यह उपकल्पना बनाई जा सकती है कि मनुष्य के व्यवहार, चिन्तन तथा व्यक्तित्व का विकास उसके चारों ओर की सामाजिक परिस्थितियों (Social Ecologies) से प्रभावित होता है। इस दृष्टिकोण से दो दशाओं के बीच की समरूपता अक्सर एक कार्यकारी उपकल्पना के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बन जाती है।

उपकल्पना का महत्व या उपयोगिता या प्रकार्य
(Importance.or Utility or Functions of Hypothesis)

उपकल्पना के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) अध्ययन को निश्चितता प्रदान करना - उपकल्पना अध्ययन को निश्चितता प्रदान करती है। इससे अध्ययनकर्त्ता को इस बात की जानकारी रहती है कि कौन-सी सूचनायें उसे कब और कहाँ से प्राप्त हो सकेंगी। दूसरे शब्दों में, सामाजिक अनुसन्धान में उपकल्पना संग्रहित किये जाने वाले तथ्यों के लिये एक आधार प्रदान करती है, इस आधार की मदद से आवश्यक तथ्यों का संग्रहण किया जाता है. तथा अनावश्यक तथ्यों को छोड़ दिया जाता है।

(2) अनुसन्धान को मार्गदर्शन प्रदान करना - उपकल्पना अनुसन्धान कार्य में अनुसन्धानकर्ता के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है। यह अनुसन्धानकर्त्ता को इधर-उधर भटकने से रोककर उसे सही दिशा दिखलाती है। पी० वी० यंग के अनुसार, "इस प्रकार उपकल्पना का प्रयोग एक दृष्टिहीन खोज * तथा अन्धाधुन्ध तथ्य संकलन से रक्षा करता है, जो बाद में अध्ययन समस्या को अप्रासंगिक और अनुपयुक्त सिद्ध कर सकते हैं।"

(3) श्रम, समय और धन की बचत - उपकल्पना के निर्माण में सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे अनुसन्धान में श्रम, समय एवं धन, तीनों की बचत होती है। उपकल्पना के अभाव में अनुसन्धान मनमाने ढंग से सामग्री का संकलन करता है। परिणामस्वरूप अन्धाधुन्ध तथ्य संकलन में बेहद समय, धन और श्रम खर्च होता है। यदि अनुसन्धानकर्त्ता उपकल्पना के निर्माण के साथ आगे बढ़ता है तो निश्चित ही वह उक्त तीनों दृष्टियों से लाभान्वित होगा।

(4) सिद्धान्तों के निर्माण में सहायक - उपकल्पनाओं के आधार पर अनुसन्धानकर्त्ता नवीन सिद्धान्तों का निर्माण करने में सक्षम तथा सफल होते हैं। गुडे तथा हॉट के अनुसार, “बिना उपकल्पना के अनुसन्धान एक अनिर्दिष्ट विचारहीन भटकने के समान है। उसके परिणामों को स्पष्ट अर्थ वाले तथ्यों में नहीं रखा जा सकता। उपकल्पना सिद्धान्त तथा ऐसी खोज के बीच में आवश्यक कड़ी है, जो अधिक ज्ञान प्राप्त करने में सहायक है।"

(5) अध्ययन क्षेत्र सरल एवं सीमित - उपकल्पना के निर्माण से अध्ययन क्षेत्र सरल एवं सीमित हो जाता है, परिणामस्वरूप गहन एवं वास्तविक अध्ययन करना सम्भव हो जाता है। लुण्डबर्ग (Lundberg ) ने लिखा है, "हम जानबूझकर अपनी विचार शक्तियों को स्वीकार करते हैं और अपने अनुसन्धान के क्षेत्र को सीमित करके त्रुटियों की सम्भावना को कम करने का प्रयास करते हैं। "

 

(6) निष्कर्ष तथा समाधान निकालने में सहायक - उपकल्पना अनुसन्धानकर्ता को एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता करती है। तथ्यों के आधार पर ही हम उपकल्पना का सत्यापन एवं पुनर्परीक्षण करते हैं। इसी निष्कर्ष के रूप में हम अपने पूर्ण कथन को सत्य प्रमाणित करते हैं अथवा असत्य पाते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि अध्ययन के परिणाम सत्य अथवा सकारात्मक ही हों। उनके असत्य अथवा नकारात्मक निकलने पर वास्तविकता तो अवश्य ही प्रकट होती है।

(7) अध्ययन के उद्देश्यों का निर्धारण सम्भव - उपकल्पना का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उपकल्पना अध्ययन के उद्देश्यों का निर्धारण करती है। इससे अध्ययन को स्पष्टता के साथ-साथ विशिष्टता भी प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में उपकल्पना यह निर्धारित करती है कि हम किसकी खोज करें।

उपकल्पना के निर्माण में कठिनाइयाँ
(Difficulties in the Formulation of Hypothesis)

उपकल्पना के निर्माण में आने वाली प्रमुख कठिनाईयाँ निम्न प्रकार हैं-

(1) प्राप्त अनुसन्धान प्रणालियों से जानकारी में असफलता - श्रेष्ठ उपकल्पना के निर्माण में प्राप्त या उपलब्ध अनुसन्धान प्रणालियों की जानकारी होना भी आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं होता तो उस स्थिति में उपकल्पना के निर्माण में कठिनाई आती है, क्योंकि उपकल्पना की सत्यता एवं परीक्षा इन्हीं उपलब्ध पद्धतियों के सफल प्रयोग पर आधारित रहती है।

(2) सैद्धान्तिक ढाँचे का ज्ञान न होना - कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उत्पन्न विचार से सम्बन्धित संरचना या ढाँचा तो उपलब्ध होता है परन्तु अनुसन्धानकर्त्ता को इस सैद्धान्तिक ढाँचे का अनुभवहीनता के कारण पूर्ण ज्ञान नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में उपकल्पना के ठीक प्रकार से निर्माण में कठिनाई आती है।

(3) स्पष्ट सैद्धान्तिक ढाँचे की अनुपस्थिति - जब कोई विचार उत्पन्न होता है तो उस पर वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा अनुसन्धान करने के लिये सबसे पहले स्पष्ट उपकल्पना का निर्माण करना होता है, लेकिन उपकल्पना के निर्माण में उस समय कठिनाई अनुभव होती है जबकि इस उत्पन्न विचार से सम्बन्धित सैद्धान्तिक संरचना या ढाँचे का अभाव हो। ऐसी स्थिति में प्रयोग सिद्ध उपकल्पना के निर्माण में कठिनाई का आना स्वाभाविक है।

(4) सैद्धान्तिक ढाँचे के पूर्ण उपयोग की योग्यता की कमी - सैद्धान्तिक ढाँचे की उपस्थिति व उसके सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान होने पर ही उपकल्पना का निर्माण नहीं हो जाता है क्योंकि इन दोनों के होते हुए भी यदि अनुसन्धानकर्त्ता में इस सैद्धान्तिक ढाँचे के तर्कपूर्ण प्रयोग की योग्यता नहीं है तो उपकल्पना का निर्माण कैसे हो सकता है?

परिकल्पना के प्रकार
(Types of Hypothesis)

शोध विशेषज्ञों के अनुसार परिकल्पना के निम्न प्रकार होते हैं.

1. चरों के संख्या के आधार पर (On the basis of number of variables) - मनोवैज्ञानिकों ने चरों की संख्या के आधार पर परिकल्पना को दो भागों में बाँटा है-

(i) साधारण परिकल्पना,
(ii) जटिल परिकल्पना।

साधारण परिकल्पना ऐसी परिकल्पना होती है, जिसमें मात्र दो ही चर होते हैं और इन्हीं दो चरों के सम्बन्ध से शोध समस्या का समाधान किया जाता है। जटिल परिकल्पना ऐसी परिकल्पना को कहते हैं, जिसमें चरों की संख्या दो से अधिक होती है। जटिल परिकल्पना में चरों में एक खास सम्बन्ध होता है जिसके द्वारा शोध समस्या का निवारण किया जाता है। उदाहरण के लिए एक नगर के उच्च सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लोगों में मदिरापान की प्रवृत्ति देहात के मध्यम सामाजिक-आर्थिक स्तर के लोगों की अपेक्षा अधिक होती है। इस परिकल्पना में तीन चर हैं सामाजिक-आर्थिक, मदिरापान की प्रवृत्ति तथा शहरी-ग्रामीण क्षेत्र। इन तीनों चरों में एक विशेष सम्बन्ध है, यह जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।

2. चरों में विशेष सम्बन्ध के आधार पर (On the basis of specific relationship of variables) - चरों का वर्गीकरण कुछ विशिष्ट सम्बन्धों के आधार पर भी किया गया है। मैकग्यूगन 1990 ने इस परिकल्पना के दो आधार बताये है-

(i) अस्तित्वात्मक परिकल्पना,
(ii) सार्वत्रिक परिकल्पना।

सार्वजनिक परिकल्पना ऐसी परिकल्पना होती है जो चरों के सभी तरह के मानों के बीच संबंध को प्रत्येक स्थिति में बनाये रखती है। उदाहरण के लिए मानव की सीखने की प्रक्रिया पुरस्कार तथा प्रशंसा करने के बाद तेज गति से बढ़ती है। अस्तित्वात्मक परिकल्पना ऐसी परिकल्पना होती है, जो सभी व्यक्तियों या पारिस्थितियों पर लागू न होकर कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति पर लागू होती है। इस परिकल्पना में एक दोष है कि यदि यह जाँच के बाद सही पायी गई तो उसका सामान्यीकरण अन्य व्यक्तियों के लिए नहीं किया जा सकता है और इस तरह यह शोधकर्ता के लिए समस्या बनी रहती है।

3. विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर (On the basis of specific purpose) - इस उद्देश्य में भी निम्न परिकल्पनाओं को सम्मिलित किया जाता है- कारणत्व परिकल्पना, वर्णनात्मक परिकल्पना, शोध परिकल्पना, नल परिकल्पना, सांख्यिकीय परिकल्पना। कारणत्व परिकल्पना का निर्माण व्यवहार के कारणों को नियंत्रित करने तथा उनकी व्याख्या के उद्देश्य के अनुसार शोधकर्ताओं द्वारा किया जाता है। वर्णनात्मक परिकल्पना का निर्माण शोधकर्ताओं द्वारा व्यवहार के बारे में पूर्वकथन - तथा उनका वर्णन करने के लिए किया जाता है। शोध परिकल्पना से तात्पर्य होता है जो किसी घटना या तथ्य के लिए बनाये गये विशिष्ट सिद्धान्त से निकाली गयी अनुमति पर आधारित हो। नल परिकल्पना, शोध परिकल्पना के विपरीत होती है। नल परिकल्पना वह है जिसके द्वारा हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं कर सकते हैं। सांख्यिकीय परिकल्पना में शोधकर्ता सांख्यिकीय जीवसंख्या को अपने प्राप्त आँकड़ों के आधार पर स्वीकृत व अस्वीकृत कर सकता है। चैम्पियन के शब्दों में, “सांख्यिकीय परिकल्पना सांख्यिकीय जीव संख्या के बारे में ऐसा कथन है जिसे प्रेक्षित आँकड़ों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर समर्थन दिया जाता है व उनका खंडन भी किया जा सकता है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  6. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  8. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
  10. प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
  11. प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
  12. प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
  13. प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
  14. प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
  15. प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
  16. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
  17. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
  18. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
  19. प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
  20. प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
  21. प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
  22. प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
  23. प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
  24. प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
  25. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
  26. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
  27. प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
  28. प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
  29. प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  30. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
  31. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
  32. प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
  33. प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
  34. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
  38. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
  39. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
  40. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
  41. प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
  42. प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
  43. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
  45. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
  47. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
  48. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
  50. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
  52. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
  53. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
  54. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
  56. प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
  57. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  58. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  59. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  60. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  61. प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
  62. प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
  63. प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  65. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  66. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  67. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  68. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  69. प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
  72. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  73. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  74. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
  75. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
  77. प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
  78. प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
  79. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  80. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  81. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  82. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  83. प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
  84. प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।

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